प्रेरक कहानियां - पार्ट 101
त्याग में आनंद
एक साधु नगरी में रहता था। हर घड़ी प्रभु - भक्ति के गीत गाता था। लोग उसका सम्मान करते। उसे कितनी ही वस्तुएँ देते।
एक दिन साधु ने शिष्य से कहा - " बेटा ! चलो, अब किसी दूसरे नगर में चलें। "
शिष्य बोला - " नहीं गुरु महाराज ! यहाँ चढ़ावा बहुत चढ़ता है। कुछ पैसे जमा हो जाएँ, तब चलेंगे। "
गुरु ने कहा - " पैसे जमा करके क्या करेगा ? चल मेरे साथ ! पैसे जमा नहीं करने हमें। "
चल पड़े दोनों। शिष्य ने कुछ पैसे जमा कर लिये थे, उन्हें अपनी धोती में बाँध रखा था।
चलते-चलते मार्ग में नदी पड़ गई। एक नौका भी थी वहाँ। नाविक पार पहुँचाने के दो आने माँगता था। साधु के पास पैसे नहीं थे। शिष्य देना नहीं चाहता था। दोनों बैठ गए।
नाविक घर जाने लगा तो बोला - " बाबा ! तुम कब तक यहाँ बैठे रहोगे ? यह है जंगल। रात को इस किनारे पर शेर पानी पीने आता है। दूसरे भयानक जानवर भी आते हैं। वे तुम्हें कच्चा चबा जाएँगे। "
शिष्य ने कहा - " तुम हमें पार ले चलो। "
नाविक बोला - " मै तो दो-दो आने लिये बिना नहीं ले-जा सकता। "
शिष्य को जान बड़ी प्यारी थी। धोती से चार आने निकालकर दे दिए - " अच्छा, अब तो ले चलो ! "
नाविक ने किराया लिया और पार पहुँचा दिया।
शिष्य बोला - " देखा गुरुजी ! आप तो कहते थे कि पैसे जमा नहीं करने हमें ? "
गुरु जी ने हँसते हुए कहा - " सोचकर देख बेटा ! पैसा जमा करने से तुम्हें सुख नहीं मिला, पैसा देने से मिला है। सुख तो त्याग में है, जमा करने में नहीं। "